मैंने देखा है

धड़कते, सांस लेते, रुकते चलते मैंने देखा है,
कोई तो है, जिसे अपने में पलते मैंने देखा है।

तुम्हारे खून से मेरी रगों में ख्व़ाब रौशन हैं,
तुम्हारी आदतों में खुद को ढलते मैंने देखा है।

न जाने कौन है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है,
खुद अपने आप को नींदों में चलते, मैंने देखा है।

मेरी ख़ामोशियों में तैरती हैं तेरी आवाज़ें,
तेरे सीने में अपना दिल मचलते, मैंने देखा है।

मुझे मालूम है तेरी दुआएँ साथ चलती हैं,
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते, मैंने देखा है।
आलोक श्रीवास्तव 

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