तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम साहिर लुधियानवी ग़ज़ल

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम

ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम

मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए

अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम

लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद

लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम

उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले

गो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से

पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम

अल्लाह-रे फ़रेब-ए-मशिय्यत कि आज तक

दुनिया के ज़ुल्म सहते रहे ख़ामुशी से हम

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