हस्ती अपनी हबाब की सी है
ये नुमाइश सराब की सी है
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
चश्म-ए-दिल खोल इस भी आलम पर
याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है
बार बार उस के दर पे जाता हूँ
हालत अब इज़्तिराब की सी है
नुक़्ता-ए-ख़ाल से तिरा अबरू
बैत इक इंतिख़ाब की सी है
मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़
उसी ख़ाना-ख़राब की सी है
आतिश-ए-ग़म में दिल भुना शायद
देर से बू कबाब की सी है
देखिए अब्र की तरह अब के
मेरी चश्म-ए-पुर-आब की सी है
'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
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