कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा कैफ़ भोपाली ग़ज़ल

कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा

मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क

कोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा

इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल

तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा

दिल की क़िस्मत ही में लिक्खा था अंधेरा शायद

वर्ना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा

गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो

आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा

खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे

चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा

'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ

अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा

Post a Comment

0 Comments