जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है हकीम नासिर ग़ज़ल

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है

संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है

उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी

नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है

पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो

मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है

अब मिरी दीद की दुनिया भी तमाशाई है

तू ने क्या मुझ को मोहब्बत में बना रक्खा है

पी जा अय्याम की तल्ख़ी को भी हँस कर 'नासिर'

ग़म को सहने में भी क़ुदरत ने मज़ा रक्खा है

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