रोज़ का उसका आना-जाना

रोज़ का उसका आना-जाना
दर्द है अपना दोस्त पुराना।

जल्दी आना देर से जाना
वही पुराना तेरा ठिकाना।

इसे गिराना उसे उठाना,
हमसे तो ये खेल हुआ ना।

यों लोगों का प्यार मिले तो
कैसा कमाना कैसा खाना।

कैसे चलती अदब से रोज़ी
हमसे अपना माल बिका ना।

मतलब के ही यार है दोनों
मेरा सिर और तेरा शाना।

समझदार खुद समझ ही लेंगे
नासमझों को क्या समझाना।

संजय ग्रोवर

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