असर उस को ज़रा नहीं होता मोमिन ख़ाँ मोमिन ग़ज़ल

असर उस को ज़रा नहीं होता

रंज राहत-फ़ज़ा नहीं होता



बेवफ़ा कहने की शिकायत है

तो भी वादा-वफ़ा नहीं होता



ज़िक्र-ए-अग़्यार से हुआ मालूम

हर्फ़-ए-नासेह बुरा नहीं होता



किस को है ज़ौक़-ए-तल्ख़-कामी लेक

जंग बिन कुछ मज़ा नहीं होता



तुम हमारे किसी तरह न हुए

वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता



उस ने क्या जाने क्या किया ले कर

दिल किसी काम का नहीं होता



इम्तिहाँ कीजिए मिरा जब तक

शौक़ ज़ोर-आज़मा नहीं होता



एक दुश्मन कि चर्ख़ है न रहे

तुझ से ये ऐ दुआ नहीं होता



आह तूल-ए-अमल है रोज़-फ़ुज़ूँ

गरचे इक मुद्दआ नहीं होता



तुम मिरे पास होते हो गोया

जब कोई दूसरा नहीं होता



हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर

हाथ दिल से जुदा नहीं होता



रहम बर-ख़स्म-ए-जान-ए-ग़ैर न हो

सब का दिल एक सा नहीं होता



दामन उस का जो है दराज़ तो हो

दस्त-ए-आशिक़ रसा नहीं होता



चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नहीं

सो तुम्हारे सिवा नहीं होता



क्यूँ सुने अर्ज़-ए-मुज़्तर ऐ 'मोमिन'

सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता

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