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 लोकप्रिय रचनाकारों की ग़ज़ल /ग़ज़लें
नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का / ग़ालिब
मोहरा, अफवाहें फैला कर
भेद क्या बाकी बचा है
लड़के वाले नाच रहे थे लड़की वाले गुमसुम थे
रोज़ का उसका आना-जाना
दिन हैं क्या बदलाव के, अवकाश के!
उसको मैं अच्छा लगता था
ज़ुबां तक बात
झूठ पहनकर कितने अच्छे लगते हो
तलघर में आयोजित सूरज
वो गरचे बोलता बिलकुल नहीं था
हैं मौसमे गर्मी से परेशान क्या करें
तमाम घर को बयाबां बनाके रखता था
कच्ची मिट्टी से लगन इतनी लगाता क्यों है
नहीं जहाज़ तो फिर बादबान किसके लिए
बात करता है इतने अहंकार की
रस्ता इतना अच्छा था
यहाँ लोगों की आपस में ठनी है
दानिशमंदों के झगड़े हैं
कितनी मुश्किल उठानी पड़ी
उस जगह सरहदें नहीं होतीं
सच का क़द झूट से बड़ा है न
टूट जाने तलक गिरा मुझको
जूगनू बन या तारा बन
सबका यही ख़्याल कभी था पर अब नहीं
काम करेगी उसकी धार
उससे मिल आये हो लगा कुछ कुछ
तू भूख, प्यास, जुल्म की न बात कर अभी
क्या हुआ उपवन में, क्यों सारे शजर लड़ने लगे
आपस में अगर अपनी मुहब्बत बनी रहे
क्या अजब दुनिया बनाई, तूने ऐ परवरदिगार
हमको सोने की कलम, चांदी की स्याही चाहिए
आपस में अगर अपनी मुहब्बत बनी रहे
दावानल सोया है कोई, जहां एक चिंगारी में
बदल गए हैं यहां साहिबे-नज़र कितने
जो भी शम्मे वफा जलाएगा।
यादों का जब साया होगा।
 क्यों परेशाँ आदमी है आजकल।
अगर चलने का ज़रा कायदा होता,
आया किये थे तेरे शहर आइना होकर
आज ज़ख़्मों को हवा दो यारों
धूप फिर ये छत छत उतरी है,
बुतकदे में सजा हुआ पत्थर
देखने वालों को भरमाती रहीं
देखते ही देखते सब के चुराकर ले गया।
हर लम्हा ज़िन्दगी के पसीने से तंग हूँ
जिनके अंदर चिराग
सुबह लगे यूँ प्यारा दिन
दिल लगाने की भूल थे पहले
दिल में ऐसे उतर गया कोई
 दो ग़ज़लें / सुरेशचंद्र शौक
कहीं कुछ तो बदलना चाहिए अब
इन दबी सिसकियों से क्या होगा
वो आग फेंक गये
जाने कब होगा ये धुआँ गायब,
कह दो, इसमें मानी क्या?
सफर में रास्ता देखा हुआ मिले, न मिले,
इन कूओं के पानी से क्या बुझ पाएगी आग ?
 रास्ते जो हमेशा सहल ढूँढ़ते हैं,
पीपल की छाँव कच्चे मकां मन को भा गए,
आदमी कितना निराला हो गया है,
जलते सूरज की आँखों में रात कोई दहता है,
है ये शोला या के चिंगारी है,
चोट दिल पर लगी नहीं होती
ख्वाब जैसे ख्याल होते हैं
इस तकलुफ़ का भी जवाब नहीं
मेरा ये इतिहास रहा
वो जब कोई भंवर पैदा करेगा।
ज़ख्‍म बदन पर खाते हैं, फिर ज़ख्म भराई देते हैं।
कमरे में सजा रक्खा है बेजान परिन्दा।
हमें ये सोच के रोना पड़ेगा
लोग जब अपनापन जताते हैं
किया रूह को क्या किसी के हवाले
डर कैसा रुसवाई का
बदल कर रुख़ हवा उस छोर से आए तो अच्छा है
दिल दुखाती थी जो पहले, दिल को रास आने लगी है
सुख का गोरी नाम न लेना दुख ही दुख है गाँवों में।
क्या है उस पार, कोई शख़्स ये समझा न सका
जाने किस बात की अब तक वो सज़ा देता है
जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़
लो चुप्पी साध ली माहौल ने सहमे शजर बावा
इतने टुकड़ों में बँट गया हूँ मैं
यही सोचकर निकला घर से।
हमको कोई गिला नहीं
जो नचाते रहे पहले कठपुतलियाँ।
सभी को लुत्फ़ आता है पराये माल में जैसे।
हर अधूरी कहानी रही
पुराना ठूँठ बरगद का पुन: हमने हरा देखा
क्यों करते हो बात शहर की।
एक दुश्मन बहुत पुराना है।
सजा मेरी खताओं की
दरोगा है वो दुनिया का दरोगाई दिखाता है।
तुम ज़रा यूँ ख़याल करते तो
कभी तो दर्ज होगी
जिगर का खूँ
हारते ही आए लेकिन अब नहीं हारंेगे हम
माफ कर दो, भूल जाओ, गम करो, गुस्सा करो
क्यों कभी मौका ही ऐसा दुश्मनों को दो
पहचान तलाशें
बँटवारे की पीड़ा
मुझे टूटन
सबको अपनी रहे ख़बर
राह तो एक थी
क्या कहें जिंदगी
खूब दिलकश
हैरानी बहुत है
बेकरार क्या करता
कौन यहाँ खुशहाल
जिगर में हौसला
आँखों को कोर भिगोना क्या
जब मैं छोटा बच्चा था
उसको अगर परखा नहीं होता
दर्द तो जीने नहीं देता मुझे
खुद से जुदाई
हैं अभी आए
आस इक भी
रो कर मैंने हँसना सीखा
मेरी यही इबादत है
मुस्कुरा के हाल कहता
बाँटी हो जिसने तीरगी
बच्चे से बस्ता है भारी
जीने की ललक
कभी जिन्दगी ने
कभी जिन्दगी ने
आशा का दीपक
आने वाले कल का स्वागत
अभिसार जिन्दगी है
रात गर हूँ
हम न पूछेंगे
दीवानों सी बातें
  क्या मिला है
तेरा ही तो हिस्सा हूँ
तनहा क्या करता
जैसे बाज परिंदों में
दिल भी वो है
उनसे मिलने जाना है
आग अपनी और उनकी रोटियाँ सिकती रहीं
वेदना जब से सयानी हो गई
अर्चना करता रहा मैं आपकी
जाम खाली
घुट घुटकर
कोई सोए कोई जागे
आजमाइश जिन्दगी से
बात चलती रही
आपसे क्या मिली नज़र
जिंदगानी पराई हुई
फक्कड़ कबीर
पल निकल जाएँगे
देखे दुनिया जहान
काल की तेज़ धारा से कट कर कटी
आपस में लड़कर अक्सर घायल हो जाते हैं
वो सफ़र में साथ है इस अदाकारी के साथ
कम अनुमानों में निकले
अभी भी धूप में गर्मी बची है
राह नहीं थी इतनी मुश्किल
रास्ता मुख्तसर नहीं होता।
क्या मालूम
 तेरी शफ़कत के साए साए हैं।
वो तो कठपुतली है बाबू
पतझड़ को न देना तूल
दिल को बहला जाती थी
बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती