खुद से मिलकर / अरुण मित्तल अद्भुत

खुद से मिलकर हो रही है आज हैरानी बहुत
मन नहीं लगता कहीं भी है परेशानी बहुत

झेलने की दर्दो गम को और गुंजाइश नहीं
सह चुका है मन मेरा दुनिया की मनमानी बहुत

चाहता हूं मैं तड़प के साथ अश्कों की नमी
यूँ तो बारिश में भी गिरता है यहाँ पानी बहुत

वो हसीं देखे हुए तो एक मुद्दत हो गई
लग रही है मुस्कुराहट भी ये अनजानी बहुत

जाने क्यों आँखों से आँसू बहने को बेताब हैं
धड़कनें किस बात की खातिर हैं दीवानी बहुत

मेरे कहते ही ये मंजर सब समझ जाओगे तुम
पर है मुश्किल बात ये मुश्किल है कह पानी बहुत

ठीक है अद्भुत जिया है तूने ग़ज़लों का हुनर
पर तेरे अशआर में है अब भी नादानी बहुत

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